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गुरुवार, 24 अगस्त 2017

धूम धाम से मनाया गया हरतालिका तीज का पर्व जाने आखिर क्यों मानते है तीज

धूम धाम से मनाया गया हरतालिका तीज का पर्व जाने आखिर क्यों मानते है तीज 



ग्रामीण मीडिया मुलताई
आज तीज है.हिंदू स्त्रियों द्वारा पति की लम्बी उम्र की कामना करते हुए निर्जला व्रत कर शिव गौरी और गणेश जी की पूजा की जाती है.घर में कैलेंडर आते ही विवाहित महिलायें सबसे पहले तीज व्रत की तिथि देखती हैं और तीज आने पर बड़े ही मनोयोग से इस व्रत को करती हैं, आखिर पति की लम्बी उम्र का जो सवाल है. पति भी उन्हें साड़ी, कपड़े, गहने दिलाकर अपना फर्ज़ अदा करते हैं.पर कभी सोचा है...किसी भी धर्म या समाज में स्त्रियों की लम्बी उम्र या उनकी बेहतरी के लिये कोई व्रत त्योहार नहीं है. आज स्त्री बीमार भी होगी तब भी निर्जला व्रत रखेगी, और दवाई तक नहीं खाएगी. पति तैयार होकर दफ्तर निकल जायेंगे. कुछ स्त्रियां गर्मी में बिना पानी के बेहोश होती रहेंगी, और जब बच्चे पानी पी लेने का आग्रह करेंगे तब वो ये कहकर मना करेंगी कि नहीं "पाप लग जायेगा" या "अगले जन्म में सूड़ा नहीं बनना".लेकिन तीज व्रत की कथा इस प्रकार है कि कुंवारी पार्वती जी ने शिव जी को पाने के लिये वर्षों कठिन तपस्या की थी, तब उन्हें शिव जी मिले थे. तपस्या करते हुए पार्वती जी को उनकी ही सहेलियों ने अगवा कर लिया था. इस करण इस व्रत को हरतालिका कहा गया है. क्योंकि हरत मतलब अगवा करना और आलिका मतलब सहेली, अर्थात सहेलियों द्वारा अपहरण करना हरतालिका कहलाता हैं.तो कथानुसार कुंवारी लड़की को मनचाहा पति पाने के लिए तीज व्रत करना चाहिये ना कि विवाहित स्त्री को पति की लम्बी उम्र के लिये. निश्चित ही पितृसत्ता का वर्चस्व क़ायम रखने के लिये तीज व्रत में इतने बदलाव किये गए होंगे.किसी भी धर्म में हमेशा से पाप को हथियार बनाकर डराने की प्रथा रही है. तीज के व्रत के साथ डर की आस्था जुड़ी हुई है. पति के बिना जीने का डर, क्योंकि ये समाज आज भी पतिविहीन स्त्री को सम्मान देने से कतराता है. बुढ़ापे में बेसहारा होने का डर,  क्योंकि सामाजिक व्यवस्था के तहत बेटियां शादी के बाद दूसरे घर भेज दी जाती हैं, ऐसे में बेटे का सहारा ही अंतिम उम्मीद होता है. जिस कारण जितिया या तीज जैसे व्रत का आविर्भाव हुआ. दोनों ही व्रत पुरुषों के लिए किए जाते हैं, जितिया बेटे के लिए और तीज पति के लिये.गूढ़ अर्थ ये है कि पुरुष जिएं, स्त्री के मरने जीने से समाज को कोई फर्क नहीं पड़ता और ना पड़ेगा. शायद तभी बेटियां कोख में ही मार दी जाती हैं. एक ही पुरुष की लम्बी उम्र के लिये मां जितिया करती है और पत्नी तीज.तीज व्रत की कथा में भी अनेक प्राकार से डराया गया है कि गलती से कोई पत्नी गलती करने की कोशिश भी ना करे. अगर कोई स्त्री व्रत नहीं करती है तो वह सात जन्म तक बंध्या रहती है और हर जन्म में विधवा होती है. यही नहीं मृत्यु के बाद नरक में जाती है. सच पूछिये तो ये पंक्ति मास्टरस्ट्रोक है. अगर पति के लिये कोई व्रत न भी करना चाहे तब भी करेगी क्योंकि मां बनना हर स्त्री का सपना होता है, और जिस स्वर्ग को आजतक किसी ने देखा नही वहां सभी जाना चाहते हैं.व्रत में अगर कोई स्त्री पानी पीती है तो अगले जनम में जोंक बनेगी, दूध पीती है तो सांप, मिठाई खाने से चींटी, दही खाने से बिल्ली, फल खाने से बंदरिया, अनाज खाने से सूकड़ी और तो और व्रत में नींद आए तो सोना भी नहीं है (हालांकि भूखे पेट नींद भी नहीं आती) क्योंकि सोने से अजगर बनेगी.
लेकिन अगर वाकई जन्म और मृत्यु इंसान के हाथों होता तो ईश्वर को कौन मानता? व्रत करने से किसी की उम्र लम्बी होती तो कोई पुरुष कभी नहीं मरता और इस देश में सिर्फ पुरुष ही पुरुष होते.एक परिवार में एक महिला किन्हीं करणों से तीज का व्रत नहीं करती थी और उनकी मृत्यु बहुत जल्दी हो गई जबकि उनके पति आज भी जीवित हैं और उसी परिवार की दूसरी महिला निर्जला व्रत रखती थी जो असमय विधवा हो गईसच तो ये है कि जिस तरह जन्म तय है उसी तरह मृत्यु भी तय है व्रत करने से किसी की उम्र बढ़ती या घटती नहीं. बाकी आप इसी बहाने से व्रत करते रहें क्योंकि बॉडी detoxify होती

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