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रविवार, 17 सितंबर 2017

सफलता की कहानी संकट से समृद्धि की ओर बढ़ती महिलाएं

ग्रामीण मीडिया सेण्टर

महिला स्व-सहायता समूहों ने की 220 करोड़ रूपये की बचत 

ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में महिलाओं के स्व-सहायता समूह महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अगले पांच सालों में महिलाओं के स्व-सहायता समूह ग्रामीण अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करने की स्थिति में आ जाएंगे। स्व-सहायता समूहों से जुड़ी हजारों महिलाओं ने अपना जीवन समृद्ध कर लिया है और गांवों में आर्थिक समृद्धि की मिसाल बन चुकी हैं। महिलाओं के डेढ़ लाख से ज्यादा समूहों ने कुल 220 करोड़ रूपये की राशि की बचत की है।
शहडोल जिले के जमुई गांव की श्रीमती गीता लोधी मजदूरी कर अपना पेट पालती थी। वे स्व-सहायता समूह से जुडी और न सिर्फ स्वयं का रोजगार मजबूत किया बल्कि अपने पति धर्मपाल को भी राज मिस्त्री के औजार खरीदकर सेंट्रिंग प्लेट एवं सेंट्रिंग का सामान भी खरीदवा दिया। उनके पति के पास आज अपनी मोटर साईकिल है। घूम-घूम कर सेंट्रिंग का ठेका लेते हैं। जहां एक परिवार की मासिक आय पहले 2500 रु. के आस-पास थी, आज हर सप्ताह में धर्मपाल चार से पांच हजार कमाते हैं। अब उनके पास छः कमरे का पक्का मकान हैं। गीता की बच्चियां रोज ट्यूशन पढ़ने जाती हैं। गीता बताती है कि आज उनके घर में तीन मोबाइल फोन है। यह परिवर्तन मात्र चार साल में हुआ है।
रीवा जिले के दुआरी  गांव की सुश्री द्रोपदी सिंह की कहानी दिलचस्प है। उनकी कहानी संकट से समृद्धि की ओर कदम बढ़ाने की कहानी है। सुश्री द्रोपदी सिंह के पति का असमय निधन हो गया। उनके सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया। दो बच्चों को पालने की जिम्मेदारी भी बड़ी जिम्मेदारी थी। द्रोपदी ने हार नहीं मानी और सिलाई सीखना शुरू किया। एक सिलाई की दुकान में 1200 रु. प्रति माह में काम करना करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे बचत के पैसे से खुद की सिलाई की मशीन खरीद ली। उन्होने पचास हजार रूपये की पूंजी इकट्ठा कर एक दुकान किराये की ले ली। आज द्रोपदी बहन साल भर में लगभग रु. एक लाख चालीस हजार रूपये कमा रही हैं। वे महिलाओं को प्रशिक्षित भी करती है। बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ा रही हैं।
रायसेन जिले के उदयपुरा विकास खंड के सिलारी गांव की श्रीमती मोहन बाई विश्वकर्मा दूसरी महिलाओं के लिये प्रेरणा बन चुकी हैं। उन्होने स्व सहायता समूह से पचास हजार रु. का ऋण लेकर अपने पति के लिये फर्नीचर की दुकान खुलवाई और आवश्यक सामग्री खरीदी। वे अपने पति के साथ काम में हाथ बटाती हैं और महीने का लगभग बीस हजार रूपये कमाती हैं। अच्छी आमदनी होने से वे अपने बच्चों की भी स्वास्थ्य, शिक्षा आदि जरूरतें पूरी कर पा रही हैं और आत्मनिर्भर होकर खुशहाल जिंदगी जी रही हैं।

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