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रविवार, 12 नवंबर 2017

नीति एवं प्रीति परस्पर विरोधी हैं जहां एक है वहां दूसरा नहीं - संत मुरलीधर महाराज

ग्रामीण मीडिया सेण्टर
नीति एवं प्रीति परस्पर विरोधी हैं जहां एक है वहां दूसरा नहीं -  संत मुरलीधर महाराज


 घोड़ाडोंगरी -  नगर में चल रही श्रीराम कथा के छठवें दिन संत मुरलीधर महाराज ने जनकपुरी भ्रमण, धनुष भंजन, लक्ष्मण परशुराम संवाद एवं श्री राम जानकी विवाह की कथा सुनाई |  उन्होने कहा कि नीति एवं प्रीति परस्पर विरोधी हैं जहां एक वहां दूसरा नहीं , नियमों में ध्यान आवश्यक है किंतु भाव पर ध्यान देने से ही प्रभु प्रसन्न होते हैं भगवान को प्रसन्न करने वाला  सामान्यजन को दुखी नहीं करता उन्होंने कहा कि ज्ञानी दर्शन कर सकता है पर परिचय प्राप्त नहीं कर सकता नारियां परिचय प्राप्त करने मैं प्रवीण होती हैं मौन अच्छा है पर व्यापारिक जीवन में बगैर बोले काम नहीं चलता इसलिए जब समय आवश्यकता पड़े तब बोलना चाहिए उन्होंने कहा कि राम लक्ष्मण जब जनकपुरी भ्रमण के लिए निकले उस समय वहां की नारीयो ने उन्हें देखा  राम की सुन्दरता पर मुग्ध हो यह कह दिया कि यह सांवरा श्याम युवक ही सीता के वर के उपयुक्त है  और वह सीता जी से राम जी की सुंदरता का वर्णन करते हुए कहती है कि उनका सौंदर्य है अवर्णनीय है जिसका कहना संभव नहीं है क्योंकि उन्हें नेत्र देखते हैं पर बोल नहीं  सकते और अधर बोल सकते हैं पर देख नहीं सकते | महाराज श्री द्वारा बताया गया कि जब सीता जी मा गौरी के पूजन के लिए पुष्पा चुनने वाटिका जाती हैं उस समय राम जी भी वहां पुष्प चुन रहे होते हैं और पुष्प चुनते समय उनके मुखारविंद पर पसीना आ जाता है पसीने की बूंदे देख उनके मन में आशंका आ जाती है कि फूल चुनने मे जिसे पसीना आ जाए वह धनुष कैसे उठा पाएंगे  तब सीता जी गौरी पूजन मैं विशेष प्रार्थना करती हैं और अपनी प्रार्थना में राम को पति रूप में प्राप्ति का भाव व्यक्त करती हैं  महाराज जी द्वारा कथा मे कई गूढ विषयो पर भी प्रकाश डाला गया एवं श्री राम विवाह से जुड़े हुए बधाई गीत व भजन गाए गए जिसे सुन श्रोता  झूम उठे | कथा के दौरान लोग झुमते नाचते दिखे

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