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रविवार, 5 नवंबर 2017

लेखक की कलम से... सपनो का शहर, मेरा मुलताई

ग्रामीण मीडिया सेण्टर 

लेख शीर्षक - सपनो का शहर, मेरा मुलताई




मै अपने घर बहुत साल बाद आ रहा था , मेरी ट्रेन विसिल देते हुए स्टेशन पर आ रुकी| चाय वाला चाय, पोहे- पोहे, का शोर कानो में सुनाई दे  रहा था | जैसे ही मैं ट्रैन से उतरा देखा काफी बड़ा स्टेशन जोकि लगभग 8 हिस्सों में विभाजित था| मेरी गाड़ी प्लेटफार्म नंबर 6 पर आकर रुकी थी| मैंने अपना सामान उठाया और निकल पड़ा अपने घर की ऒर| जैसे ही थोड़ा  आगे बड़ा लगभग एक दर्जन  कुली मेरे आगे खड़े थे और मुझसे कह रहे थे साहब लाईये हम उठा लेते है सामान| मैंने कहा, नहीं आप रहने दीजिये  मैं  खुद ही कर लूँगा| थोड़ा आगे बड़ा तो देखा कुछ विदेशी भी यंहा वंहा घूम रहे है | स्टेशन से बहार आकर देखा तो ऑटो की लम्बी कतारें  मेरा इंतज़ार कर रही थी| स्वच्छता की पहचान करवाने वाला स्टेशन मेरे मन को भा गया| भीड़ भाड़ से निकलकर मैं जैसे-तैसे ऑटो में बैठा और अपनी घर की और  निकल पड़ा| सुबह का समय था, हर जगह स्वच्छ हवा, फूलों की  खुशबू थी, कंही मंदिरों की घंटियां बज रही थी तो कंही अगरबत्ती की खुशबू आ रही थी | चौड़ी-चौड़ी  सड़के, बड़ी बड़ी इमारतों के बीच  से  होती हुई मुझे अपनी ऒर आकर्षित कर रही थी| चौराहे पर लाल पिली बत्ती के ट्रैफिक सिग्नल, स्वच्छ चौराहे भी मनमोहक थे | ये सब देखते हुए मेरा घर कब आ गया पता ही नहीं चला| घर पहुंचकर माता-पिता से मिला आशीर्वाद लिया  और कहा- " माँ हमारा छोटा सा नगर अब महानगर सा लगता है|" माँ बोली- " बेटा ये तो कुछ भी नहीं है तू नहा ले और कुछ खाले फिर तुझे सैर पर ले चलती हूँ | " कुछ घंटो बाद मैं  और माँ सैर पर निकले, दोपहर हो चुकी थी| नगर को देख कर ऐसा लग रहा था मानो की खुद भगवान ने धरती पर आकर कायापलट की हो जितने भारतीय नहीं थे उससे ज्यादा तो विदेशी नगर में घूम रहे थे| हम पहुंचे, माँ ताप्ती के मंदिर, एक विशाल मंदिर, प्रांगण लम्बी कतारों में भक्त माँ के दर्शन कर रहे थे| माँ के तालाब का पानी इतना साफ़ था की चन्द्रमा भी खुद को निहार ले| चारों ओर स्वच्छता इतनी की भारत का प्रथम शहर का ख़िताब इसे ही मिला हो| बड़ी पार्किंग व्यवस्था, बड़े-बड़े होटल, और मैंने तो किसी के मुँह से अभी अभी यह भी सुना था की जल्दी यंहा इंटरनेशनल एयरपोर्ट भी खुलने वाला है| अचानक मुझे तेज घंटों की आवाज सुनाई पड़ने लगी  पहले मुझे लगा की आरती शुरू  होने वाली है फिर अचानक आवाज तेज होती गई और मुझे ज्ञात हुआ सुबह के 5 बज चुके है और यह मंदिर के घंटों की नहीं मेरे अलार्म की आवाज है और इतना सुन्दर स्वप्न मेरा टूट गया| बुजुर्गों का कहना है की सुबह के सपने अक्सर सत्य होते है | माँ ताप्ती से विनती मेरा भी सपना सच हो और मेरा सपनों का शहर मुलताई ऐसा ही महानगर बन जाये| 

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