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गुरुवार, 28 मार्च 2019

कपटी व्यापारियो के शोषण से बचाने के लिये आवश्यक वस्तु अधिनियम

ग्रामीण मीडिया संवाददाता    
मुलताई का राशन के चावल की तस्करी में आवश्यक वस्तु अधिनियम में प्रकरण दर्ज हो, सभी आरोपी बने। 
आवश्यक वस्‍तु अधिनियम, 1955 को उपभोक्‍ताओं को अनिवार्य वस्‍तुओं की सहजता से उपलब्‍धता सुनिश्चित कराने तथा कपटी व्‍यापारियों के शोषण से उनकी रक्षा के लिए बनाया गया है। अधिनियम में उन वस्‍तुओं के उत्‍पादन वितरण और मूल्‍य निर्धारण को विनियमित एवं नियंत्रित करने की व्‍यवस्‍था की गई है, जिनकी आपूर्ति बनाए रखने या बढ़ाने तथा उनका समान वितरण प्राप्‍त करने और उचित मूल्‍य पर उनकी उपलब्‍धता के लिए अनिवार्य घोषित किया गया है। अधिनियम के तहत अधिकांश शक्तियां राज्‍य सरकारों को दी गई हैं।
अनिवार्य घोषित की गई वस्‍तुओं की सूची की आर्थिक परिस्थितियों में, परिवर्तनों विशेषतया उनके उत्‍पादन मांग और आपूर्ति के संबंध में, के आलोक में समय-समय पर समीक्षा की जाती है। 15 फरवरी, 2002 से सरकार ने पहले घोषित अनिवार्य वस्‍तुओं की सूची से 12 वस्‍तुओं को पूरी तरह और एक को आंशिक रूप से हटा दिया है। आर्थिक विकास त्‍वरित करने और उपभोक्‍ताओं को लाभ पहुँचाने के लिए 31 मार्च 2004 से और दो वस्‍तुओं को सूची से हटा दिया गया है। वर्तमान में अनिवार्य वस्‍तुओं की सूची में 16 नाम ही शामिल हैं।
भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के उदारीकरण के संदर्भ में यह निर्णय लिया गया कि अनिवार्य वस्‍तु अधिनियम 1944 केंद्र और राज्‍य के लिए छत्र विधान के रूप में जारी रहे, जब आवश्‍यक हो इसका उपयोग तथापि प्रगतिशील नियंत्रण और प्रतिषेध के लिए किया जाए। तदनुसार केंद्र सरकार ने लाइसेंसिंग की आवश्‍यकता हटाने, स्‍टॉक सीमा और विनिर्दिष्‍ट खाद्य वस्‍तुओं की आवाजाही प्रति‍बद्ध करने का आदेश 2002, 15 फरवरी, 2002 अनिवार्य वस्‍तु अधिनियम, 1955 के तहत जारी कर दिया है जिसमें गेहूँ, धान, चावल, मोटे अनाज, शर्करा, खाद्य तिलहन और खाद्य तेलों के संबंध में जिसके लिए किसी लाइसेंस की आवश्‍यकता नहीं है या अनुमति की आवश्‍यकता अधिनियम के तहत जारी किसी आदेश के अधीन नहीं है। किसी भी मात्रा में व्‍यापारी को मुक्‍त खरीददारी करने, भण्‍डारण बिक्री, परिवहन, वितरण, बिक्री करने की अनुमति दी गई है।.
खाद्य सामग्री के कुछ और मदों के संबंध में इसी प्रकार प्रतिषेध अर्थात दालगुड़गेहूँ के उत्‍पाद (अर्थात मैदा, रवा, सूजी, आटा परिष्‍कृत आटा और ब्रान) और हाइड्रोजनीकृत वनस्‍पति तेल या वनस्‍पति को भी दिनांक 16 जून, 2003 की अधिसूचना आदेश द्वारा हटा दिया गया है। इसके अतिरिक्‍त इस अधिसूचना के द्वारा 15 फरवरी 2002 का उक्त केंद्रीय आदेश में उत्‍पादक, विनिर्माता, आयातक और निर्यातक को शामिल करने के लिए व्‍यापारी (डीलर) की परिभाषा का दायरा बढ़ाने के लिए संशोधन किया गया है। तथापि, आदेश को उस हद तक संशोधित किया गया है कि किसानों को मूल्‍य समर्थन सुनिश्चित करने के लिए चावल के लेवी आदेश को बरकरार रखा गया है, जबकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली/कल्‍याण योजनाओं के लिए भारतीय खाद्य निगम/राज्‍य सरकार की एजेंसियों के अधिकार में चावल की पर्याप्‍त उपलब्‍धता सुनिश्चित की गई है। इसी प्रकार चीनी के उत्‍पादक, विनिर्माता आयातक और निर्यातकों को उपयुक्‍त आदेश की परिधि से बाहर रखा गया है ताकि चीनी के भण्‍डार, भण्‍डारण आदि के संबंध में निदेशन जारी किया जाना सुकर बनाया जा सके, विशेषतया प्रचलित निर्गम प्रक्रम/लेवी चीनी कोटा के संदर्भ में और गन्ना उत्पादकों को न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य प्रदान करने के लिए भी।
www.graminmedia.com

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