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गुरुवार, 23 नवंबर 2017

नगर और ग्राम के बकरी पालको से खतरा है, हरे भरे वृक्षों और पर्यावरण को

ग्रामीण मीडिया सेण्टर (राजेंद्र भार्गव)

ग्रामीण मीडिया ने वृक्षारोपण के साथ पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले मैदानी कारणों को तलाशे  तो ये कुछ चौकाने वाली जानकारी सामने आई।  जिस पर न तो शासन,प्रशासन और न ही आम जनता का ध्यान जाता है। इस और ध्यान देना होगा। अन्यथा केवल मंचो की भाषण बाजी तक ही रहेगा पर्यावरण विषय,
मुलताई जैसे नगरों में लोग अपने अपने घरो में बकरी पालन करते है , अधिकांश पालको के पास उनके चारे की व्यवस्था नही रहती है।  ऐसी स्थिती में वे लोग हर दिन सुबह सुबह अपने अपने दो चक्का  वाहन पर एक बड़े से बॉस में तेज धार का हस्सीया और कुल्हाड़ी बाँध करके नगरसीमा के सड़को के दोनों और के सरकारी और निजी वृक्षों की पत्ती, डगाने बड़े पैमाने पर काट करके दो चक्का  वाहन से ला करके के बकरी की भूख मिटाते है। थोड़े दिनों में एक एक करके पुरे झाड़ को पत्ती विहीन कर देते है। बिना पत्तीओं का वृक्ष प्रकाश संश्लेशण की क्रिया नहीं कर पाता  है ये बात हर आदमी जानता है और भूखा प्यासा ये पेड़ मर जाता है बाद में सूखा पेड़ कट जाता है। अब सड़को के दोनों और के वृक्ष पत्ती विहीन हो गए तो ये खेतो के वृक्षों को अपना निशाना बनाते है। ये काम सुबह सुबह होता है जब अधिकांश लोग निंद में होते है , इस पर जनजागरूकता रोक टोक जरूरी है।  वृक्षा रोपण के समाचार ,फैशन बाजी से नहीं जमीनी तोर पर काम से बचेगे झाड़,पेड़,पर्यावरण अन्यथा सतपुड़ा की ये वादी रेगीस्तान में धीरे धीरे बदल रही है। आमने सामने की दुश्मनी और पंगे बाजी भी लेना पडेगा तैयार हो जाओ पर्यावरन प्रेमीओ 



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