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गुरुवार, 31 अगस्त 2017

सरकार ने माना देश में है चारे की कमी- फिर कैसे बढ़ेगी प्रति पशु उत्पादकता !!!


सरकार ने माना देश में है चारे की कमी- फिर कैसे बढ़ेगी प्रति पशु उत्पादकता !!!
पशु संदेश, भोपाल |



संसद के मानसून सत्र में सांसद बी के हरी प्रसाद द्वारा पशु पालन के क्षेत्र में चारे की कमी के संबंध में उठाये गये एक सवाल के लिखित जवाब में कृषि राज्य मंत्री सुदर्शन भगत ने सदन को जानकारी दी कि, देश में हरे चारे की 35.6% और शुष्क चारे की 11% अनुमानित कमी है | मंत्री जी सदन को यह जानकरी देते समय इस समस्या को लेकर कितना संजीदा थे, यह हम नहीं जानते, पर हम यह पक्के तौर पर जानते हैं कि देश के पशु और पशु पालक चारे की कमी के दंश को वर्षों से झेल रहे हैं | किसी से छुपा नहीं है की, पशु चारे की कमी पशुपालन व्यसाय के लिए गंभीर समस्या का रूप लेती जा रही है | प्राकृतिक आपदाओं जैसे सूखा, बाढ़ आदि की स्थिति में यह समस्या और ज्यादा विकराल रूप धारण कर लेती है |

ऊपर बताये गये आंकडे भी केवल अनुमानित ही हैं, क्योंकि हमारे देश में चारे की वास्तविक उपलब्धता का आंकलन करने का कोई साइंटिफिक methood है ही नहीं | देश के अधिकांश राज्यों में पशु चारे की उपलब्धता की स्थति सरकारी आकंड़ों से कहीं ज्यादा भयावह है | पंजाब, हरियाणा जैसे कुछ राज्यों को छोड़ दें तो देश के ज्यादातर राज्य चारे के संकट से जूझ रहे हैं | अभी इसी वर्ष जनवरी से जून के बीच महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, ओड़िसा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में हजारों पशु चारे की कमी के चलते काल के मुँह में समा गये | स्थिती इतनी विकट थी की, लोगों ने अपने पशुओं को भगवान भरोसे सड़कों या जंगलों में छोड़ दिया था | आप को यकीन न हो तो एक बार बुंदेलखंड का दौरा कर आईये, अपने आप यकीन हो जायेगा | देश में चारे की कमी से प्रीति वर्ष कितने पशु दम तोड़ते हैं, इस बात का आंकड़ा देश की किसी एजेंसी के पास नहीं है |

मोटे तौर पर माना जाता है कि आजादी के समय देश के 8% रकबे पर चारा उत्पादन होता था, जो अब यह घटकर 4% रह गया है | संसदीय समिति की रिपोर्ट में भी सामने आया है कि, चारागाहों का एक बड़ा हिस्सा या तो  खत्म हो गया है या अतिक्रमण की चपेट में है | खाद्यान्न की मांग में निरंतर वृद्धि से भी पशु चारे के लिए खेती का रकबा लगातार कम होता जा रहा है | कैश क्रॉप्स की तरफ बढ़ते किसानों के रुझान की वजह से पशु चारे की किल्लत बढ़ गई है | रही-सही कसर किसानों द्वारा हार्वेस्टर  से गेहूं आदि की कटाई और फिर नरवाई जलाने की आदत ने पूरी कर दी है | इन सभी वजहों से उत्पन्न हुई चारे की कमी के चलते, पिछले कुछ वर्षों में हरे चारे के दाम दो गुना तो सूखे चारे के दाम चार गुना तक बढ़ चुके हैं |

पशु चारे की कमी के लिए सरकार की अदूरदर्शी नीतियां भी कम जिम्मेदार नहीं हैं | समय के साथ चारे की मांग और आपूर्ति में अंतर बढ़ता रहा, पर सरकार ने इस दिशा में प्रभावी कदम नहीं उठाये | सरकार का सारा ध्यान नस्ल सुधार कार्यक्रम पर ही केन्द्रित रहता है | उच्च पदों पर बैठे नॉन टेक्निकल लोगों को कौन समझाये की डेरी डेवलपमेंट में जितना महत्त्व नस्ल सुधार का है उतना ही महत्त्व चारा उत्पादन का भी है | फीडिंग और ब्रीडिंग दोनों ही डेरी डेवलपमेंट के मुख्य स्तंभ हैं, दोनों पर सामान रूप से ध्यान देने पर ही सकारात्मक परीणाम निकलेंगे | जितना ध्यान AI (कृतिम गर्भाधान) पर दिया जाता है उतना ही ध्यान फोडर प्रोडक्शन पर भी दिया जाता, तो आज दूध के भाव 50 रूपए प्रति लीटर तक नहीं पहुँचते | नीती निर्माताओं को समझना होगा कि, बिना सस्ते चारे के प्रोफिटेबिल डेरी फार्मिंग की कल्पना ही नहीं की जा सकती | चारे की समस्या से निपटने के लिए सरकार ने मिशन मोड पर आज तक कोई कार्यक्रम चलाया ही नहीं |

चारे की समस्या को सरकार शायद इसलिए गंभीरता से नहीं लेती क्योंकि, देश में दूध का उत्पादन लगातार रिकॉर्ड स्तर पर बढ़ रहा है | देश में दुग्ध उत्पादन फैक्ट्री में निर्मित पशु आहार (concentrat cattel feed) खिलाने से बढ़ रहा है | हरे चारे की अनउपलब्धता के चलते किसान पशुओं को महँगा पशु आहार खिलाने के लिए मजबूर है | यही वजह है की देश में पशु आहार की मांग वा उत्पादन दोनों लगातार बढ़ रहे हैं | हरे चारे को पशु आहार से रिप्लेस करने की वजह से दूध की उत्पादन लागत बढ़ रही है, जिसका सीधा असर दूध की लगातार बढ़ती हुई कीमतों के रूप में देखा जा सकता है |

दूध की उत्पादन लागत बढ़ने का खामियाजा दुग्ध उत्पादक और उपभोक्ता दोनों को ही उठाना पड़ रहा है | उत्पादन लागत बढ़ने से किसान के लिए डेरी का धंधा लाभ का व्यवसाय नहीं रह गया है, वहीं बढ़ती हुई कीमतों की वजह से दूध गरीब आदमी की पहुँच से दूर होता जा रहा है | डेरी व्यसाय में आमदनी का 65 से 70 प्रतिशत हिस्सा पशु की खुराक पर खर्च होता है | दाने और चारे दोनों की बढ़ती कीमतों ने दुग्ध उत्पादकों

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